प्रत्यावर्ती धारा डायनेमो या प्रत्यावर्ती धारा

प्रत्यावर्ती धारा डायनेमो या प्रत्यावर्ती धारा

 प्रश्न 01:- प्रत्यावर्ती धारा डायनेमो या प्रत्यावर्ती धारा जनित्र का वर्णन निम्नलिखित शीर्षो के आधार पर कीजिए

  1. सिद्धांत

  2. मुख्य भागों का वर्णन

  3. कार्य विधि

  4. नामांकित चित्र


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उत्तर- जनित्र या डायनेमो - जनित्र एक   ऐसी युक्ति है जो यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करती है यह विद्युत चुंबकीय प्रेरण के सिद्धांत पर आधारित होती है

  1. सिद्धांत -प्रत्यावर्ती विद्युत वाहक बल वह विद्युत वाहक बल होता है जिसके परिमाण और दिशा दोनों समय के साथ आवर्ती रूप से परिवर्तित होते हैं जब कुंडली का तल चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के लंबवत होता है तो प्रत्यावर्ती धारा डायनेमो में प्रेरित धारा का मान शून्य हो जाता है किंतु जब उसका तल चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के समांतर होता है तो प्रेरित धारा का मान अधिकतम होता है इस प्रकार वह परिपथ में बहने वाली प्रत्यावर्ती धारा को निम्न समीकरण के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है 

   I = I० Sinओमेगा t


02. नामांकित चित्र - 

  


03. मुख्य भाग- प्रत्यावर्ती धारा डायनेमो के मुख्यता 4 भाग होते हैं

  1. क्षेत्र चुंबक NS 

  2. आर्मेचर ABCD

  3. सर्पीवलैय

  4. ब्रुश B1और B2


  1. क्षेत्र चुंबक NS - छोटे डायनेमो में यह एक स्थाई नाल चुंबक होता है जबकि बड़े डायनेमो में यह शक्तिशाली विद्युत चुंबक होता है

  2. आर्मेचर ABCD- यह एक आयताकार कुंडली ABCD होती है जो मुलायम लोहे के पटलित क्रोड पर तांबे के विद्युत रूद्ध तार की सघन रूप से बनाई जाती है मुलायम लोहे के क्रोड लेने से चुंबकीय क्षेत्र का मान बढ़ जाता है

  3. सर्पीवलैय - यह तांबे के बने दो सामाक्षीय बलैय S1 और S2 हैं जो आर्मेचर के एक सिरे से जुड़े रहते हैं तथा आर्मेचर के साथ घूमते रहते हैं

  4. ब्रुश B1और B2- यह कार्बन या धातु से बनी दो पत्तियां B1और B2 होती है जिन्हें ब्रुश कहते हैं यह ब्रुश अपनी स्थिति में स्थिर रहते हैं तथा घूमते हुए सर्पीबलैय के संपर्क में बने रहते हैं


जनित्र डायनेमो की कार्यविधि- जब आर्मेचर ABCD को ध्रुव खंडों NS के बीच घुमाया जाता है तो वह चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं को काटता है फल स्वरुप उससे बध्द चुंबकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है जिससे प्रेरित धारा उत्पन्न हो जाती है जिसकी दिशा फ्लेमिंग के दाएं हाथ के नियम से ज्ञात की जा सकती है

माना आर्मेचर ABCD को वामावर्त(anti clock) दिशा में घुमाया जाता है तब इसकी भुजा AB ऊपर की ओर तथा CD नीचे की ओर आ रही होती है तब फ्लेमिंग के दाएं हाथ के नियम से प्रेरित धारा की दिशा ABCD होगी

द्वितीयक अर्थ चक्र में भुजाओं AB,CD की स्थितियां बदल जाती हैं तब भुजा CD ऊपर की ओर तथा भुजा AB नीचे की ओर आ रही होती है इस स्थिति में प्रेरित धारा की दिशा DCBA होगी

अतः वह्य परिपथ में विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती है


प्रश्न02:- फ्लेमिंग के दाएं हाथ का नियम लिखिए

उत्तर- फ्लेमिंग के दाएं हाथ के  नियमानुसार दाएं हाथ का अंगूठा तर्जनी और मध्यमा को इस प्रकार फैलाओ कि वे परस्पर लंबवत हो अब यदि अंगूठा चालक की गति की दिशा को एवं तर्जनी क्षेत्र की दिशा को प्रदर्शित करें तो मध्यमा प्रेरित धारा की दिशा को प्रदर्शित करती है तब यह फ्लेमिंग के दाएं हाथ के नियम के तरह कार्य करेगा

यही फ्लेमिंग के दाएं हाथ का नियम है

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