साहित्य और समाज पर निबंध | Essay on Literature and Society in Hindi|
साहित्य और समाज नामक निबंध के निबंध लेखन से संबंधित अन्य शीर्षक , अर्थात साहित्य और समाज से मिलता जुलता हुआ कोई भी शीर्षक अगर आपकी परीक्षा में पूछा जाता है तो आपको यही निबंध लिखना है।साहित्य और समाज से मिलते जुलते कुछ शीर्षक इस प्रकार हैं।
>साहित्य और समाज
>साहित्य समाज का दर्पण है
>साहित्य की शक्ति
>साहित्य का उद्देश्य
>साहित्य और लोक मंगल
अंधकार है वहां , जहां आदित्य नहीं है l
मुर्दा है वह देश , जहां साहित्य नहीं है lI
निबंध की रूपरेखा -
1.प्रस्तावना
2.साहित्य क्या है?
3.समाज क्या है?
4.साहित्य पर समाज का प्रभाव
5.समाज पर साहित्य का प्रभाव
6.साहित्य और समाज का संबंध
7.उपसंहार
साहित्य और समाज
साहित्य क्या है? - "हितेन सह साहितेन् तस्य भावं साहित्यम" अर्थात साहित्य वह है , जिसमें हित की भावना हो , जिसमें समष्टि का हित सर्वहित हो । दूसरे शब्दों में , साहित्य रमणीय शब्द अर्थ से गुंजित भावों की माला है , जिसमें सत्यम , शिवम और सुंदरम तीनों का समन्वय होता है।आचार्य जगन्नाथ ने साहित्य को परिभाषित करते हुए लिखा है कि -
रमणीयार्थः प्रतिपादक: शब्द काव्यम अर्थात रमणीय अर्थ के प्रतिपादक शब्द एवं अर्थों के साहित्य को कब कहते हैं।
समाज क्या है? - आदिकाल में हिंसक पशुओं से बचाव के लिए या अन्य कारणों से मानव के समूह में रहने के लिए अपने कुछ अधिकारियों को प्रदान कर एवं अपने कुछ कर्तव्य निश्चित कर समाज का निर्माण किया।तब समाज का स्वरूप अत्यंत ही सीमित था ,किंतु आज हमारा समाज अत्यंत ही विस्तृत हो गया है।आज मनुष्य एक सामाजिक प्राणी के रूप में जन्म से लेकर मृत्यु तक समाज से जुड़ा रहता है।
साहित्य पर समाज का प्रभाव - साहित्य के निर्माण में समाज का प्रमुख हाथ रहता है और बिना समाज के साहित्य का निर्माण असंभव है।जिस समय का समाज जैसा होगा , उस समय उसी प्रकार के साहित्य की रचना की जाएगी।इसलिए साहित्य को समाज का दर्पण कहा गया है Iयदि हम किसी समाज या जाति के उत्थान - पतन ,आचार- व्यवहार , सभ्यता ,संस्कृति आदि को देखना चाहते हैं तो यह हमें उस समाज से संबंधित साहित्य का अध्ययन करने से ज्ञात हो जाएगा।संसार की सभ्य जातियों में उन्हीं की गणना होती है जिनका साहित्य उच्च कोटि का होता है।
समाज पर साहित्य का प्रभाव - समाज अपने अनुरूप साहित्य को बदलता है तो साहित्य समाज को बदलने का प्रयास करता है।साहित्य मनुष्य को गतिशीलता प्रदान करता है।वह अंधविश्वासो , रूढ़ियों एवं सड़ी-गली मानसिकता को दूर कर समाज को नई रोशनी प्रदान करता है।यदि फ्रांस में रूसो का , रूस में मार्क्स का साहित्य नहीं होता तो इन देशों में क्रांतिया नहीं हुई होती।हमारे देश में भी इस प्रकार के उदाहरणों की कमी नहीं है।तुलसी तथा सूर के साहित्य ने समाज में भक्ति का संचार किया है।श्री बंकिम चंद्र चटर्जी के वंदे मातरम नामक गान ने असंख्य भारतीयों को मातृभूमि पर मर मिटने के लिए प्रोत्साहित किया।
साहित्य और समाज का संबंध - साहित्य और समाज का बहुत ही घनिष्ट संबंध है , दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।साहित्य मनुष्य का उज्जवल तम चेतना का वरदान है।इसका अस्तित्व कवि या लेखक के ही सुख के लिए सीमित नहीं होता।'स्वान्तः सुखाय' के लिए रचित तुलसी का मानस आज समाज सुखाय व समाज निर्माणार्थ एक आदर्श ग्रंथ बन गया है।साहित्य शक्ति का स्त्रोत है lसमाज क्रिया लोक कर्कशता से युक्त है पर साहित्य विशुद्ध भाव लोक की सर्जना है , जिस का मानव जीवन पर तत्कालीन रूप से प्रभाव पड़ता है।प्रेम , दया , सेवा उपकार जैसे मानवीय गुणों का संचार समाज में साहित्य के माध्यम से ही हो सकता है।
उपसंहार - आज का युग अंधानुकरण का युग है ,हम पाश्चात्य रंग में इतने डूब गए हैं कि हम उससे निकलने में अपना विनाश समझते हैं।विज्ञान के बढ़ते चरण ने हमारे मनोबल को झकझोर कर रख दिया है।आज हमारा समाज भग्न हो रहा है और नई सभ्यता के पुजारी उसका तमाशा देख रहे हैं।समाज को उत्कृष्ट साहित्य की आवश्यकता है ,जिससे उसका उत्थान हो सके।हम साहित्य को नए -नए आयाम दे।काव्यों की रचना हमारे कर्मों के अनुरूप हो ,कहानी हमारे जीवन में गहरी उतरे और गीतों के बीज हमारे ह्रदय में अंकुरित हो।हमारा समाज अपने पुराने वैभव को प्राप्त कर सके।इसके लिए हम साहित्य को नए आयाम दे I
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