भारतेंदु युग के निबंधों की विशेषताएं
नमस्कार दोस्तों आज की यह पोस्ट आप सभी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होने वाली है इस पोस्ट में हम आपको भारतेंदु युग के निबंधों की विशेषताओं बताएंगे साथ ही भारतेंदु युग के प्रमुख निबंध कारों के नाम भी आपको बताएंगे और साथ ही साथ ही साथ भी बताएंगे कि भारतेंदु युग का नाम भारतेंदु युग क्यों पड़ा तो सभी जानकारी आपको इस पोस्ट में बताई जाएगी तो इस पोस्ट को लास्ट तक जरुर पढ़े।
भारतेंदु युग का परिचय
भारतेंदु जी का विशेष योगदान हिंदी गद्य साहित्य के विकास में रहा है। उनकी महती सेवाओं को देखकर ही इस योग का प्रचारक व गद्य साहित्य का जनक भारतेंदु जी को कहा जाता है कि इस युग के निबंधों की विशेषताएं इस प्रकार हैं।
भारतेंदु काल -इस युग के नाटककारो में भारतेंदु का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है ।भारतेंदु ने देश प्रेम और समाज सुधार की भावना से प्रेरित होकर प्रतिकूल नाटक लिखा है। इस कार्य में नाटकों की रचना का मूल उद्देश्य मनोरंजन के साथ-साथ जनमनस को जागृत करना है जिसमें आत्मविश्वास भरना था। युग के अन्य प्रमुख नाटककार है बालकृष्ण भट्ट, लाला श्रीनिवास दास, राधाचरण गोस्वामी, राधा कृष्ण दास किशोरी लाल गोस्वामी आदि।
भारतेंदु युग - निबंध साहित्य का प्रारंभ भारतेंदु हरिश्चंद्र के समय से होता है। उसके समय के पत्र-पत्रिकाओं में निबंध का मौलिक रूप देखा जा सकता है 'इस युग में अधिकांश निबंध छोटे छोटे लिखे गए हैं जैसे - आँख, भौह, बातचीत आदि। समाज सुधार और देशभक्ति का भाव इस समय के निबंधों की विशेषता रही है।
भारतेंदु युगीन निबंधों की विशेषताएं -
समाज सुधार की भावना
राष्ट्रीयता व देश प्रेम
विश्वास विश्वास और प्रहरियों का प्रहार
व्यंग्यात्मक भाषा शैली
भारतेंदु युग के प्रमुख निबंधकार -
भारतेंदु हरिश्चंद्र -ईश्वर बड़ा विलक्षण है, एक अद्धभुत अपूर्व स्वप्न।
बालकृष्ण भट्ट - चंद्रोदय, चढ़ती उमर, बातचीत
प्रताप नारायण मिश्र - परीक्षा, वृद्ध, दाँत, पेट
बालमुकुंद गुप्त -शिव शंभु का चिट्ठा
आधुनिक हिंदी साहित्य का प्रवेश द्वार -
भारतेंदु युग को आधुनिक हिंदी साहित्य का प्रवेश द्वार माना जाता है। इस युग के कवियों में नव के प्रति मोह के साथ ही प्राचीन के प्रति अनुरोध भी था। भारतेंदु युग नवजागरण का युग है। नई सामाजिक चेतना उभरकर आई। भारतेन्दु युग में देशभक्ति और राज्य भक्ति तत्कालीन राजनीतिक का अभिन्न अंग था, जिसका स्पष्ट प्रभाव इस युग के कवियों में देखा जा सकता है।
भारतेंदु काल में कविता के क्षेत्र में ब्रज भाषा का प्रयोग और गद्य के क्षेत्र में खड़ी बोली का प्रयोग किया गया। खड़ी बोली का विकास युग की महत्वपूर्ण घटना है। इस युग में पत्रकारिता, उपन्यास, कहानी नाटक, आलोचना, निबंध आदि अनेक गद्य विधाओं का विकास हुआ, जिसका माध्यम खड़ी बोली है। प्रायः इस युग में प्रत्येक लेखक किसी ना किसी पत्रिका का संपादन करता था ।भारतेंदु युग में जिन साहित्यिक रूप और लेखन का बीज बोया गया था वह द्विवेदी युग में खूब फला फूला।
भारतेंदु युगीन काव्य की विशेषताएं -
राष्ट्रीयता की भावना-इस युग के कवियों ने देश प्रेम की रचनाओं के माध्यम से जनमानस में राष्ट्रीय भावना का बीजारोपण किया।
सामाजिक चेतना का विकास - इस काल का काव्य सामाजिक चेतना का काव्य है। इस युग के कवियों ने समाज में व्याप्त अंध विश्वास और सामाजिक रूढ़ियों का दूर करने के लिए कविताएं लिखी।
हास्य व्यंग - हास्य व्यंग्य शैली को मध्यम बनाकर पश्चिमी सभ्यता, विदेशी शासन और सामाजिक अंध विश्वासों पर करारे व्यंग्य प्रथा को आगे बढ़ाया गया।
अंग्रेजी शिक्षा का विरोध -भारतेंदु युगीन कवियों ने अंग्रेजी भाषा और अंग्रेजी शिक्षा के प्रसार -प्रचार के प्रति अपनी विरोध कविता में प्रकट किया है।
विभिन्न काव्य रूपों का प्रयोग - इस काल में काव्य के विभिन्न रूप दिखाई देते हैं जैसे मुक्तक काव्य, प्रबंध काव्य आदि।
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